Thursday, September 17, 2009

मैं हमेशा से ही डरता आया हूँ पूनम की रात से
जब जब मैंने समुन्दर की लहरों कों मचलते देखा...!!
मन है की संभाले नही संभलता मगर पता नही क्यूँ...??

हर अमावास की शामकदम
खुद बखुद समुन्दर की
तरफ बढे चले जाते हैं ....!
उदास थरथराती लहरें
डग -डगमाते क़दमों से
किनारों की चट्टानों से
टकरा करटूट जाती हैं.
बिखर जाती
हैं बहुत सकून मिलता
है धरती पर ना सही
कोई तो है
इक आम इंसान की
चकनाचूर होती
आशाओं का साथी

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